आवास एवं पर्यावरण मंत्री ने फ्लाईएश की उपयोगिता पर सम्मेलन का किया शुभारंभ
फ्लाईएश उत्पादक और उपयोगकर्ता के मध्य
हो बेहतर समन्वय: न्यायमूर्ति श्री दलीप सिंह
फ्लाईएश को संसाधन के रूप में देखा जाए
रायपुर, 02 जून 2017
आवास एवं पर्यावरण मंत्री श्री राजेश मूणत ने कहा है कि कोयला आधारित ताप बिजली घरों को उत्पन्न होने वाले फ्लाईएश का पूरा हिसाब देना होगा और इसके शत-प्रतिशत उपयोग की कार्य-योजना हर वर्ष प्रस्तुत करनी होगी। उन्होंने कहा कि फ्लाईएश का शत-प्रतिशत उपयोग सुनिश्चित करने के लिए उद्योगों और केन्द्र तथा राज्य सरकारों को साथ मिलकर दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ समयबद्ध योजना बनाकर कार्य करना होगा। श्री मूणत आज यहां ‘कोयला आधारित ताप विद्युतगृह से उत्पन्न फ्लाईएश की उपयोगिता’ विषय पर आयोजित एक दिवसीय सम्मेलन (कॉन्फ्रेंस) को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने सम्मेलन का शुभारंभ किया।
राष्ट्रीय हरित न्यायाधीकरण (एन.जी.टी.) की सेन्ट्रल जोनल बैंच भोपाल के न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति श्री दलीप सिंह ने सम्मेलन की अध्यक्षता की। एन.जी.टी. भोपाल के विशेषज्ञ सदस्य डॉ. एस.एस. ग्रेबियाल, एन.जी.टी. भोपाल के रजिस्ट्रार जनरल श्री संजय शुक्ला, छत्तीसगढ़ के आवास एवं पर्यावरण विभाग के सचिव श्री संजय शुक्ला और मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव श्री ए.एन. मिश्रा सहित राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की प्रमुख औद्योगिक इकाईयों के प्रतिनिधि सम्मेलन में उपस्थित थे। सम्मेलन का आयोजन माना विमानतल मार्ग स्थित एक निजी होटल में किया गया।
श्री मूणत ने सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए कहा कि वर्तमान में छत्तीसगढ़ में उत्पन्न होने वाली फ्लाईएश के मात्र 35 से 37 प्रतिशत का ही उपयोग किया जा रहा है। इसका शत-प्रतिशत उपयोग करने के लिए कठोर कदम उठाने पड़ेंगे। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत छत्तीसगढ़ में 20 लाख मकान बनाये जाने हैं। इनमें फ्लाईएश से निर्मित ईंटों का उपयोग किया जा सकता है। शासकीय निर्माण कार्यों में फ्लाईएश ईंटों के निर्माण के संबंध में दिशा-निर्देश पहले ही जारी किए जा चुके हैं। उन्होंने कहा कि गांवों में फ्लाईएश ईंटों के निर्माण के संयंत्रों की स्थापना का काम तापविद्युत गृहों और संबंधित उद्योगों द्वारा कार्पोरेट सोशल जिम्मेदारी (सी.एस.आर.) मद से किया जा सकता है। इसके माध्यम से बेरोजगार युवाओं को बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर मिल सकते हैं। गांवों में अन्य विकास कार्यों में भी इन ईंटों का प्रयोग किया जा सकता है। उन्होंने राष्ट्रीय हरित न्यायाधीकरण (एनजीटी) द्वारा उद्योगों से फ्लाईएश के उपयोग के संबंध में सार्थक संवाद के लिए सम्मेलन के आयोजन की इस पहल का स्वागत करते हुए एनजीटी को धन्यवाद दिया।
श्री मूणत ने खाली खदान को भरने और सड़क निर्माण कार्य में फ्लाईएश के उपयोग के संबंध में आ रही व्यावहारिक दिक्कतों की ओर उद्योगों का ध्यान आकर्षित किया। राष्ट्रीय हरित न्यायाधीकरण (एन.जी.टी.) की सेन्ट्रल जोनल बैंच भोपाल के न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति श्री दलीप सिंह ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि आज दिनभर के विचार-विमर्श के बाद सम्मेलन के निष्कर्षों पर ‘रायपुर घोषणा पत्र’ जारी की जानी चाहिए और उसके अनुसार फ्लाईएश के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए कार्य योजना पर अमल किया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति श्री सिंह ने नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने और फ्लाईएश के उपयोग के संबंध में लगातार अनुसंधान और विकास (आर.एण्ड डी.) को बढ़ावा देने की आवश्यकता बतायी। उन्होंने कहा कि फ्लाईएश के उपयोग के लिए सभी संबंधित पक्षों को सार्थक प्रयास करने चाहिए, जिससे कठोर कदम उठाने की जरूरत न पड़े। उन्होंने सुझाव दिया कि पावर प्लांटों के साथ - साथ सीमेंट संयंत्र और फ्लाईएश ईंट निर्माण संयंत्र की स्थापना के संबंध में भी गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए, जिससे पावर प्लांट में उत्पन्न होने वाली फ्लाईएश का शत-प्रतिशत उपयोग सुनिश्चित किया जा सके। उन्होंने फ्लाईएश उत्पन्नकर्ता और उपयोगकर्ता के बीच बेहतर समन्वय की जरूरत पर बल दिया। न्यायमूर्ति श्री सिंह ने सम्मेलन के आयोजन के लिए राज्य सरकार द्वारा की गई पहल की सराहना की। एन.जी.टी. भोपाल के विशेषज्ञ सदस्य डॉ. एस.एस. ग्रेबियाल ने फ्लाईएश के विभिन्न उपयोगों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि फ्लाईएश को एक संसाधन के रूप में देखा जाना चाहिए।
आवास एवं पर्यावरण विभाग के सचिव श्री संजय शुक्ला ने स्वागत भाषण दिया। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में 76 ताप विद्युतगृह हैं, जिनमें प्रतिवर्ष 3.5 करोड़ टन फ्लाईएश उत्पन्न होती है। फ्लाईएश के निष्पादन के संबंध में केन्द्र सरकार द्वारा वर्ष 1999, 2003, 2009 और 2016 में नोटिफिकेशन जारी किया गया है, जिसके अनुसार 31 दिसम्बर 2017 तक संयंत्रों को उत्पन्न होने वाली शत प्रतिशत फ्लाईएश का उपयोग सुनिश्चित करना होगा। संयंत्रों को 20 प्रतिशत फ्लाईएश ईंट निर्माताओं को निःशुल्क देनी चाहिए। फ्लाईएश 300 किलोमीटर तक परिवहन कर निःशुल्क देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सीमेंट प्लांट क्लिंकर बनाते हैं, जिनका दूसरे राज्यों को निर्यात किया जाता है और क्लिंकर को पीस कर फ्लाईएश मिलाकर सीमेंट तैयार की जाती है। छत्तीसगढ़ के सीमेंट संयंत्रों को क्लिंकर निर्यात करने की जगह प्रदेश में ही सीमेंट बनाकर उसका निर्यात करना चाहिए, जिससे फ्लाईएश का ज्यादा से ज्यादा उपयोग हो सके। इस अवसर पर विभिन्न औद्योगिक इकाईयों, ताप विद्युतगृहों, एस.ई.सी.एल. के प्रतिनिधि बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
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