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मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कल 19 जून को देश के प्रसिद्ध साहित्यकार और पत्रकार स्वर्गीय पंडित माधव राव सप्रे की 146वीं जयंती पर जनता को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं दी है। डॉ. सिंह ने सप्रे जी की जयंती की पूर्व संध्या पर आज यहां जारी शुभकामना संदेश में कहा है कि पं. माधव राव सप्रे छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के जनक थे। उनका व्यक्तित्व और कृतित्व सभी साहित्यकारों, पत्रकारों और आम जनता के लिए भी प्रेरणादायक है। उन्होंने आज से लगभग 117 साल पहले सन् 1900 में श्री रामराव चिंचोलकर के साथ मिलकर हिन्दी मासिक पत्रिका ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ का सम्पादन और प्रकाशन शुरू करते हुए छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता की बुनियाद रखी। मुख्यमंत्री ने कहा ‘छत्तीसगढ़ मित्र‘ में प्रकाशित सप्रे जी की कहानी ‘टोकरी भर मिट्टी’ को हिन्दी की पहली मौलिक कहानी होने का गौरव प्राप्त है। राज्य सरकार ने उनके सम्मान में पंडित माधव राव सप्रे राष्ट्रीय रचनात्मकता सम्मान की भी स्थापना की है।
मुख्यमंत्री ने कहा - सप्रे जी ने कई महत्वपूर्ण पुस्तकों की रचना की और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक द्वारा मराठी में रचित ‘गीता रहस्य’ का हिन्दी अनुवाद किया। इसके अलावा सप्रे जी ने राव बहादुर चिंतामणी विनायक वैद्य द्वारा रचित मराठी ग्रंथ ‘श्रीमन्महाभारत-मीमांसा’ का सरल हिन्दी में ‘महाभारत मीमांसा’ के नाम से अनुवाद किया। डॉ. रमन सिंह ने कहा - हम सबके लिए यह गर्व की बात है कि छत्तीसगढ़ राज्य स्वर्गीय पंडित माधव राव सप्रे जैसे महान तपस्वी और यशस्वी साहित्यकार और पत्रकार की कर्मभूमि के रूप में गौरवान्वित हुआ है। स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में सप्रे जी ने अपनी लेखनी से आम जनता के बीच राष्ट्रीय चेतना के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए रायपुर में सन् 1912 में जानकी देवी कन्या पाठशाला की स्थापना की और वर्ष 1920 में यहां राष्ट्रीय विद्यालय की भी शुरूआत की।
उल्लेखनीय है कि पंडित माधवराव सप्रे का जन्म 19 जून 1871 को मध्यप्रदेश के ग्राम पथरिया (जिला दमोह) में हुआ था। उनकी प्राथमिक शिक्षा छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में और हाई स्कूल की शिक्षा रायपुर में हुई। उनकी उच्च शिक्षा जबलपुर, ग्वालियर और नागपुर में हुई। उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से बी.ए. की उपाधि प्राप्त की। सप्रे जी ने हिन्दी के साहित्यकारों को संगठित करने के लिए मई 1906 में नागपुर से हिन्दी ग्रंथमाला पत्रिका का भी प्रकाशन शुरू किया, लेकिन राष्ट्रीयता से परिपूर्ण विचारों पर आधारित इस पत्रिका की बढ़ती लोकप्रियता के कारण तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने सन् 1908 में इसका प्रकाशन बंद करवा दिया। इतना ही नहीं बल्कि अंग्रेज सरकार ने 22 अगस्त 1908 को उन्हें आई.पी.सी की धारा-124 (अ) के तहत गिरफ्तार भी कर लिया। कुछ महीनों के बाद उन्हें जेल से रिहा किया गया। तत्कालीन सामाजिक - सांस्कृतिक विषयों पर सप्रे जी के लगभग 200 निबंध कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। सन् 1924 में उन्हें देहरादून में आयोजित अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन में सभापति चुना गया। सप्रे जी का निधन 23 अप्रेल 1926 को रायपुर के तात्यापारा स्थित उनके निवास में हुआ।
मुख्यमंत्री ने कहा - सप्रे जी ने कई महत्वपूर्ण पुस्तकों की रचना की और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक द्वारा मराठी में रचित ‘गीता रहस्य’ का हिन्दी अनुवाद किया। इसके अलावा सप्रे जी ने राव बहादुर चिंतामणी विनायक वैद्य द्वारा रचित मराठी ग्रंथ ‘श्रीमन्महाभारत-मीमांसा’ का सरल हिन्दी में ‘महाभारत मीमांसा’ के नाम से अनुवाद किया। डॉ. रमन सिंह ने कहा - हम सबके लिए यह गर्व की बात है कि छत्तीसगढ़ राज्य स्वर्गीय पंडित माधव राव सप्रे जैसे महान तपस्वी और यशस्वी साहित्यकार और पत्रकार की कर्मभूमि के रूप में गौरवान्वित हुआ है। स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में सप्रे जी ने अपनी लेखनी से आम जनता के बीच राष्ट्रीय चेतना के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए रायपुर में सन् 1912 में जानकी देवी कन्या पाठशाला की स्थापना की और वर्ष 1920 में यहां राष्ट्रीय विद्यालय की भी शुरूआत की।
उल्लेखनीय है कि पंडित माधवराव सप्रे का जन्म 19 जून 1871 को मध्यप्रदेश के ग्राम पथरिया (जिला दमोह) में हुआ था। उनकी प्राथमिक शिक्षा छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में और हाई स्कूल की शिक्षा रायपुर में हुई। उनकी उच्च शिक्षा जबलपुर, ग्वालियर और नागपुर में हुई। उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से बी.ए. की उपाधि प्राप्त की। सप्रे जी ने हिन्दी के साहित्यकारों को संगठित करने के लिए मई 1906 में नागपुर से हिन्दी ग्रंथमाला पत्रिका का भी प्रकाशन शुरू किया, लेकिन राष्ट्रीयता से परिपूर्ण विचारों पर आधारित इस पत्रिका की बढ़ती लोकप्रियता के कारण तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने सन् 1908 में इसका प्रकाशन बंद करवा दिया। इतना ही नहीं बल्कि अंग्रेज सरकार ने 22 अगस्त 1908 को उन्हें आई.पी.सी की धारा-124 (अ) के तहत गिरफ्तार भी कर लिया। कुछ महीनों के बाद उन्हें जेल से रिहा किया गया। तत्कालीन सामाजिक - सांस्कृतिक विषयों पर सप्रे जी के लगभग 200 निबंध कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। सन् 1924 में उन्हें देहरादून में आयोजित अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन में सभापति चुना गया। सप्रे जी का निधन 23 अप्रेल 1926 को रायपुर के तात्यापारा स्थित उनके निवास में हुआ।
क्रमांक- 1199/स्वराज्य