आदेश का उल्लंघन करने पर किसानों देना होगा हर्जाना
उचित प्रबंधन से मिट्टी को मिलते हैं पोषक तत्व
उचित प्रबंधन से मिट्टी को मिलते हैं पोषक तत्व
रायपुर, 24 मई 2017
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण) ने फसल के अवशेषों को खेतों में जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। फसल अवशेष खेतों में जलाना अब दण्डनीय अपराध होगा। फसल अवशेष जलाने पर किसानों को पर्यावरण को होने वाले नुकसान के एवज में हर्जाना देना होगा। छोटे किसान जिनके पास दो एकड़ से कम खेत हैं, उन्हें दो हजार 500 रूपए, मध्यम श्रेणी के किसान, जिनके पास दो से पांच एकड़ खेत हैं, उन्हें पांच हजार रूपए एवं बड़े किसान जिनके पास पांच एकड़ से अधिक खेत हैं, उन्हंे 15 हजार रूपए का हर्जाना बतौर फसल अवशेष जलाने से पर्यावरण को होने वाले नुकसान के एवज में देना होगा।
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण प्रमुख बेंच नई दिल्ली द्वारा पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण प्राधिकरण) के संदर्भ में आदेश पारित कर फसल अवशेषों को खेतों में जलाना प्रतिबंधित किया गया है। प्राधिकरण की भोपाल बेंच द्वारा राज्य शासन को इसका परिपालन सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं। प्राधिकरण के आदेश के संदर्भ में राज्य शासन द्वारा सभी जिला कलेक्टरों को परिपत्र जारी कर फसल अवशेषों के जलाए जाने पर रोक लगाने के निर्देश दिए गए हैं।
फसल अवशेष जलाए जाने से होने वाले नुकसान
कृषि वैज्ञानिकों और कृषि विभाग के अधिकारियों ने आज यहां बताया कि किसान फसल कटाई के बाद फसल अवशेषों को खेतों में ही जला देते हैं, ताकि नयी फसलों की बोआई कर सकें। फसल अवशेषों को खेतों में जलाने से मिट्टी की उर्वरता कम होती है। मित्र कीटों के साथ-साथ सूक्ष्म जीव पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं। अवशेषों के जलने से ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को बल मिलता है। इससे पर्यावरण प्रदूषित होता है तथा इसका प्रभाव मानव और पशुओं के अलावा मिट्टी के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है।
वैज्ञानिकों ने बताया कि खेतों में फसल अवशेष जलाने से मिट्टी में पाए जाने वाले पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश एवं सल्फर नष्ट हो जाते हैं, इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है। फसल अवशेष जलाने से ग्रीन हाउस प्रभाव पैदा करने वाली तथा अन्य हानिकारक गैसों जैसे मीथेन, कार्बन मोनो ऑक्साईड, नाइट्रसऑक्साईड और नाइट्रोजन के अन्य ऑक्साईड का उर्त्सजन होता है। बायोमास जलाने से निकलने वाले धुएं में फेफड़ों की बीमारी को बढ़ाने वाले तथा कैंसर पैदा करने वाले विभिन्न अज्ञात एवं संभावित प्रदूषक होते हैं। फसल अवशेष जलाए जाने से मिट्टी की सर्वाधिक सक्रिय 15 सेंटीमीटर तक की परत में सभी प्रकार के लाभदायक सूक्ष्म जीवियों का नाश हो जाता है। मिट्टी में पाए जाने वाले केचुएं व अन्य फसल लाभकारी जीव और कीट नष्ट हो जाते हैं।
उचित प्रबंधन से बहुत फायदा
कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि एक अनुमान के अनुसार एक टन धान के पैरों को जलाने से 5.5 किलोग्राम नाइट्रोजन, 2.3 किलोग्राम फास्फोरस, 25 किलोग्राम पोटेशियम तथा 1.2 किलोग्राम सल्फर नष्ट हो जाता है। फसल अवशेषों को उचित तरीके से प्रबंधन करने पर फसलों को मुख्य और सूक्ष्म पोषक तत्व प्राप्त होते हैं। फसल कटाई के उपरांत खेतों में पड़े पैरा या भूसा आदि को गहरी जोताई कर जमीन में दबा देने और उसमें पानी भर देने से फसल अवशेष कम्पोस्ट में बदल जाते हैं।
फसल कटाई के बाद खेतों में बचे अवशेषों जैसे घास-फूस, पत्तियों और पौधों के ठूंठ आदि को सड़ाने के लिए 20-25 किलोग्राम नाइट्रोजन एक हेक्टेयर की दर से खेतों मंे छिड़काव कर कल्टीमेटर या रोटावेटर से जमीन को बराबर मिला देना चाहिए। फसल कटाई के बाद दी गई नाइट्रोजन अवशेषों की सड़न क्रिया को तेज कर देती है। इस प्रकार पौधों के अवशेष खेतों में ही विघटित होकर ह्यूमस की मात्रा में बढ़ोत्तरी करते हैं। इस प्रक्रिया में एक माह का समय लगता है। एक माह के पश्चात फसल अवशेष स्वयं विघटित होकर आगे बोई जाने वाली फसलों को पोषक तत्व प्रदान करते हैं।
फसल कटाई के बाद अवशेषों को खेतों मंे ही इकट्ठा कर कम्पोस्ट गड्ढे में या वर्मी कम्पोस्ट टांके में डालकर कम्पोस्ट बनाने के लिए उपयोग किया जा सकता है। फसल अवशेष का उपयोग मशरूम उत्पादन के लिए भी किया जाता है। खेतों में फसल अवशेष को बिना जलाए बीजों की बोनी के लिए जीरो सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल या हैप्पी सीडर आदि बोनी यंत्र तथा फसल अवशेष प्रबंधन के यंत्रों का उपयोग किए जाने से बीजों का प्रतिस्थापन उपयुक्त नमी स्तर पर होता है। साथ ही खेतों में ऊपर बिछे फसल अवशेष नमी संरक्षण, खरपतवार नियंत्रण एवं बीजों के सही अंकुरण के लिए मल्ंिचग का कार्य करते हैं । फसल अवशेषों से बोर्ड बनाने के साथ-साथ इसका उपयोग रफ कागज और पैकेजिंग मटेरियल तैयार करने तथा पशुओं के चारे के रूप में भी किया जा सकता है। इसका उपयोग इथेनाल उत्पादन तथा ऊर्जा उत्पादन में कच्चे माल के रूप में भी हो सकता है।
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण प्रमुख बेंच नई दिल्ली द्वारा पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण प्राधिकरण) के संदर्भ में आदेश पारित कर फसल अवशेषों को खेतों में जलाना प्रतिबंधित किया गया है। प्राधिकरण की भोपाल बेंच द्वारा राज्य शासन को इसका परिपालन सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं। प्राधिकरण के आदेश के संदर्भ में राज्य शासन द्वारा सभी जिला कलेक्टरों को परिपत्र जारी कर फसल अवशेषों के जलाए जाने पर रोक लगाने के निर्देश दिए गए हैं।
फसल अवशेष जलाए जाने से होने वाले नुकसान
कृषि वैज्ञानिकों और कृषि विभाग के अधिकारियों ने आज यहां बताया कि किसान फसल कटाई के बाद फसल अवशेषों को खेतों में ही जला देते हैं, ताकि नयी फसलों की बोआई कर सकें। फसल अवशेषों को खेतों में जलाने से मिट्टी की उर्वरता कम होती है। मित्र कीटों के साथ-साथ सूक्ष्म जीव पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं। अवशेषों के जलने से ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को बल मिलता है। इससे पर्यावरण प्रदूषित होता है तथा इसका प्रभाव मानव और पशुओं के अलावा मिट्टी के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है।
वैज्ञानिकों ने बताया कि खेतों में फसल अवशेष जलाने से मिट्टी में पाए जाने वाले पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश एवं सल्फर नष्ट हो जाते हैं, इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है। फसल अवशेष जलाने से ग्रीन हाउस प्रभाव पैदा करने वाली तथा अन्य हानिकारक गैसों जैसे मीथेन, कार्बन मोनो ऑक्साईड, नाइट्रसऑक्साईड और नाइट्रोजन के अन्य ऑक्साईड का उर्त्सजन होता है। बायोमास जलाने से निकलने वाले धुएं में फेफड़ों की बीमारी को बढ़ाने वाले तथा कैंसर पैदा करने वाले विभिन्न अज्ञात एवं संभावित प्रदूषक होते हैं। फसल अवशेष जलाए जाने से मिट्टी की सर्वाधिक सक्रिय 15 सेंटीमीटर तक की परत में सभी प्रकार के लाभदायक सूक्ष्म जीवियों का नाश हो जाता है। मिट्टी में पाए जाने वाले केचुएं व अन्य फसल लाभकारी जीव और कीट नष्ट हो जाते हैं।
उचित प्रबंधन से बहुत फायदा
कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि एक अनुमान के अनुसार एक टन धान के पैरों को जलाने से 5.5 किलोग्राम नाइट्रोजन, 2.3 किलोग्राम फास्फोरस, 25 किलोग्राम पोटेशियम तथा 1.2 किलोग्राम सल्फर नष्ट हो जाता है। फसल अवशेषों को उचित तरीके से प्रबंधन करने पर फसलों को मुख्य और सूक्ष्म पोषक तत्व प्राप्त होते हैं। फसल कटाई के उपरांत खेतों में पड़े पैरा या भूसा आदि को गहरी जोताई कर जमीन में दबा देने और उसमें पानी भर देने से फसल अवशेष कम्पोस्ट में बदल जाते हैं।
फसल कटाई के बाद खेतों में बचे अवशेषों जैसे घास-फूस, पत्तियों और पौधों के ठूंठ आदि को सड़ाने के लिए 20-25 किलोग्राम नाइट्रोजन एक हेक्टेयर की दर से खेतों मंे छिड़काव कर कल्टीमेटर या रोटावेटर से जमीन को बराबर मिला देना चाहिए। फसल कटाई के बाद दी गई नाइट्रोजन अवशेषों की सड़न क्रिया को तेज कर देती है। इस प्रकार पौधों के अवशेष खेतों में ही विघटित होकर ह्यूमस की मात्रा में बढ़ोत्तरी करते हैं। इस प्रक्रिया में एक माह का समय लगता है। एक माह के पश्चात फसल अवशेष स्वयं विघटित होकर आगे बोई जाने वाली फसलों को पोषक तत्व प्रदान करते हैं।
फसल कटाई के बाद अवशेषों को खेतों मंे ही इकट्ठा कर कम्पोस्ट गड्ढे में या वर्मी कम्पोस्ट टांके में डालकर कम्पोस्ट बनाने के लिए उपयोग किया जा सकता है। फसल अवशेष का उपयोग मशरूम उत्पादन के लिए भी किया जाता है। खेतों में फसल अवशेष को बिना जलाए बीजों की बोनी के लिए जीरो सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल या हैप्पी सीडर आदि बोनी यंत्र तथा फसल अवशेष प्रबंधन के यंत्रों का उपयोग किए जाने से बीजों का प्रतिस्थापन उपयुक्त नमी स्तर पर होता है। साथ ही खेतों में ऊपर बिछे फसल अवशेष नमी संरक्षण, खरपतवार नियंत्रण एवं बीजों के सही अंकुरण के लिए मल्ंिचग का कार्य करते हैं । फसल अवशेषों से बोर्ड बनाने के साथ-साथ इसका उपयोग रफ कागज और पैकेजिंग मटेरियल तैयार करने तथा पशुओं के चारे के रूप में भी किया जा सकता है। इसका उपयोग इथेनाल उत्पादन तथा ऊर्जा उत्पादन में कच्चे माल के रूप में भी हो सकता है।
क्रमांक-876/राजेश