Friday, 7 July 2017

रायपुर : जैव उत्पाद ‘डिकम्पोजर’ फसलों में पोषक तत्व बढ़ाने में उपयोगी : कृषि अपशिष्ट अपघटक एवं जैविक खेती विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला सम्पन्न

रायपुर, 07 जुलाई 2017


जैव उत्पाद ‘डिकम्पोजर’ सभी प्रकार की फसलों में पोषक तत्व बढ़ाने एवं कीट व्याधि नियंत्रण के लिए उपयोगी होता है। यह उत्पाद देशी गाय के गोबर से बनाया जाता है। राज्य कृषि प्रबंधन एवं विस्तार प्रशिक्षण संस्थान के सभाकक्ष में ‘कृषि अपशिष्ट अपघटक एवं जैविक खेती’ विषय पर आयोजित एक दिवसीय परिचर्चा सह कार्यशाला में विशेषज्ञों ने किसानों के लिए यह उपयोगी जानकारी दी। 
राज्य शासन के कृषि विभाग के अपर मुख्य सचिव एवं कृषि उत्पादन आयुक्त श्री अजय सिंह ने कार्यशाला में खेती-किसानी के लिए बहु उपयोगी जैविक दवा डिकम्पोजर का उपयोग करने के लिए किसानों को जागरूक करने हर संभव प्रयास करने की बात कही। उन्होंने कहा कि इससे खेती-किसानी की लागत में कमी लाने के साथ-साथ किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को पाने में सफलता मिली है। राष्ट्रीय जैविक कृषि केंद्र गाजियाबाद के निदेशक डॉ. कृष्णचंद्र ने आधुनिक खेती में फसल अपशिष्ट के प्रबंधन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए वेस्ट डिकम्पोजर के उपयोग एवं महत्व के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि किसानांे द्वारा धान पैरा को खेतों में ही जला दिया जाता है। इससे मिट्टी के सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं। पर्यावरण को नुकसान भी पहुंचता है। डॉ. कृष्णचंद्र ने बताया कि पैरा को सड़ाने के लिए डिकम्पोजर का उपयोग करना बेहद लाभदायक होता है। डिकम्पोजर को हल्की सिंचाई किए जैसे पैरा में छिड़कना चाहिए। इससे 40-45 दिन के अंदर पैरा सड़ जाता है और बाद में उत्तम किस्म का खाद बन जाता है। उन्होंने बताया कि डिकम्पोजर के एक शीशी मात्रा को 200 लीटर पानी एवं दो किलोग्राम गुड़ में मिलाकर इसे अधिक मात्रा में तैयार किया जा सकता है। एक शीशी डिकम्पोजर की कीमत मात्र 20 रूपए हैं। डॉ. कृष्णचंद्र ने परम्परागत कृषि विकास योजना तथा पी.जी.एस. जैविक प्रमाणीकरण पद्धति के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी। 
कार्यशाला में संचालक कृषि श्री एम.एस. केरकेट्टा छत्तीसगढ़ में जैविक खेती में डिकम्पोजर के उपयोग को बढ़ावा देने की मंशा जाहिर करते हुए वहां उपस्थित कृषि विभाग के मैदानी अधिकारियों को इसके लिए भरपूर सहयोग करने का आग्रह किया। अपर संचालक कृषि डॉ. एस.आर. रात्रे ने जैविक खेती में फसल अपशिष्ट प्रबंधन पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में फसल कटाई के लिए कम्बाईन हार्वेस्टर का उपयोग बढ़ गया है। इससे फसल के अवशेष खेतों में ही रह जाते हैं, जिसे किसान बाद में जला देते हैं। इन अवशेषों को जलाने से मिट्टी के सूक्ष्म तत्व नष्ट हो जाते हैं। डि कम्पोजर के माध्यम से इन अवशेषों को सड़ाकर खाद बनाने से किसानों को बहुत फायदा होगा। कार्यशाला में उद्यानिकी,  बीज प्रमाणिकरण संस्थान तथा कृषि विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी भागीदारी की।   
क्रमांक-1485/राजेश

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